रुआंसी आँखों से अकेलेपन और वीरानियों को मेरा शुक्रिया
दुनिया ने न सही पर कमसकम तुमने तो मेरा साथ दिया
प्यार , ख़ुशी , दोस्ती , अपने , सुकून तो क्या कहिये
मुझे हंसी तक की नहीं चाहत,मैंने तो अश्कों को गले लगा लिया
काली अकेली लम्बी रातें देती हैं सच्चा साथ मेरा और
खबरदार हैं मेरे होठ , जो इन्होने उजेरे का ज़िक्र किया
ईमारत की सर्बुलंदियों में नहीं , मुझको तो नीव में मज़ा अता है
उचाईयों से तो कसम खुदा की दिल मेरा बड़ा घबराता है
अच्छी चीज के दाम हैं ज्यादा , उनको खरीदना मुझसे न बन पाता है
गम, और आंसू जितने थे पैसे , उन्ही में गुज़ारा हो जाता है
प्यार ,मेहेफिलों , दोस्ती , की होती देखि मैंने बिक्रीया
रुआंसी आँखों से अकेलेपन और वीरानियों को मेरा शुक्रिया
जब ह्रदय में भावनाओं का भंवर बनता है , एक ऐसा भंवर जिसे आप किसी के साथ बतला कर भी शांत नहीं कर सकते , वो भंवर अत्यंत रौद्र रूप को धारण करलेने पर एक रचना का मोती मुझे देता है , उन्ही मोतियों का एक छोटा सा आभूषण है ये ब्लॉग
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
सोमवार, 22 अगस्त 2011
लोकपाल महा -हथियार
हमको हमारे लोकतंत्र का आधार चाहिए |
हमको हमारा शक्तिशाली जन्लोकपाल चाहिए||
लहू लुहान है माँ भारती , भ्रष्टाचारियों के प्रहारों से |
षड्यंत्रों से , लालच से , निष्ठुरता से ,शत्रु के वारों से ||
हमारा भी मन भर चुका ,घूसखोरों से ,लम्बी कतारों से|
जन्लोकपाल लागू कराएँगे भालो से ना तलवारों से||
इसे तो स्थापित होना है "शांति" सत्य अहिंसा के विचारों से|
निराशा के घोर अन्धकार में ये चांदनी की "किरण"
है||
इस चांदनी से नभ उज्जवल करेंगे ये हमारा प्रण है |
ये जन्लोकपाल हमारे लोकतंत्र का आ"भूषण" होगा||
जिससे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार का दूर प्रदूषण होगा |
सरकारी लोकपाल और आश्वासनों से नहीं "संतोष" करेंगे||
हम तो अब अंतिम क्षण तक प्रकट अपना रोष करेंगे |
देशभक्ति की इस केजरी में फल आज लग आया है||
तभी तो रामलीला मैदान में जनसैलाब सामने आया है |
अन्ना जी के रूप में वो गुजराती बैरिस्टर वापिस आया हैं||
साथ अपने अहिंसा , अनशन जैसे भीषण शस्त्र लाया है |
भारत दृढ होकर आज खड़ा है विरुद्ध भ्रष्टाचार के||
माँ भारती के दामन के होने तार -तार के |
हे श्रीमंत सामंत आगे बढिए हम आपके साथ हैं ||
हम समझ चुके हैं की आप में ही कुछ करामात है |
स्वर्णभूमि गंदे कीड़ों से हो रही बर्बाद है||
और रो रो कर कर रही फ़रियाद है |
की बच्चों मेरे साथ जो हो रहा है उसकी बारे में जरा सोचो||
और जरा मेरे कुपूतों को भी कहदो की मुझे अब और मत नोचो |
मैं अब और अधिक सहन नहीं कर पाउंगी||
अब और अधिक नोचा तो मैं तो मर जाउंगी |
इन कपूतों को अपने रक्त पर और न जिन्दा रख पाऊँगी||
जय हिंद वन्दे मातरम
(मयंक अगरवाल
९३५०७५८३४४)
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