रविवार, 6 फ़रवरी 2011

एक सीप की किस्मत

कुदरत ने जब भी कभी कोई मोती बनाया
तो उसे सीप का बंद कवच पहनाया
सीप गन्दी बदसूरत बदरंग और है बेकार
पर फिर भी मोती को है इससे सरोकार
चाहें तो आप कह सकते हैं इसको प्यार
या फिर चाहें तो कह दें एक चमत्कार
मोती को सबसे बचा के रखती है सीप
समुन्दर के खार मे पल-२ खपती है सीप
सीप को बदले मे कुछ भी नहीं चाहिए
उसे तो मोती के दिल मे बस एक एहसास चाहिए
मोती को समझना चाहिए सीप की कुर्बानी
मोती को अब और नहीं करनी चाहिए नादानी
ये तो सीप का बेशर्त सच्चा रूहानी प्यार है
तभी तो जब मोती को लेने आया कोई राजकुमार है
तो सीप को कोई शिकवा नहीं ,गिला नहीं है
उसने तो चुप चाप झेला छुरियों का वार है
शायद यही इस दुनिया का दस्तूर है
तभी तो लाखों सीप फैली चूर-२ हैं

आपसे मेरा रिश्ता क्या है शायद समझ आ गया है
आखिर ये कौन सा सुरूर-ए-जाम मुझपे छा गया है?
ये कौन सा सोमरस है जो जगाता है हरदम रातों मे
जो बंद आँखों से अरमानो की कलम चलवाता है ख़्वाबों मे
जो जलता नहीं आतिशों से मह्ताबों से
ये रिश्ता बड़ा ही गहरा है सागर के जैसा
ये रिश्ता बेहद फैला है अम्बर के जैसा
ये रिश्ता है एक जरूरत का एक प्यास का
एक प्यारे से अपनेपन के अहसाह का
मैं नयन हूँ मुझको तुम्हारी प्रेम-ज्योति चाहिए
मैं एक सीप हूँ मुझको मेरा मोती चाहिए
मैं एक अतृप्त आत्मा हूँ मुझे मुक्ति(आप) चाहिए
मैं एक फंसा हुआ बटोही हूँ मुझे युक्ति(आप) चाहिए
मैं एक दुर्बल हूँ मुझे क्षमता(आप) चाहिए
मैं एक गरीब हूँ मुझे समता(आप) चाहिए
मैं एक बालक हूँ मुझे ममता(आप) चाहिए
मगर एक मजबूरी मेरे साथ चल रही है
एक बेबसी की डायन दिल मे पल रही है
आपका कद बेहद बेहद ऊंचा है
आपकी ख़ूबसूरती से वाकिफ हर गली कूंचा है
आप शोहरत के तख़्त पे आसीन हैं
पर मेरी हालत बड़ी ग़मगीन है
मैं आपके पैरों की धूल भी नहीं
इस गुलाब का मैं शूल(काँटा ) भी नहीं
मैं आपसे इस गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहता हूँ
फिर से उस अकेलेपन की बदहवासी चाहता हूँ



















एक और कविता दिल की गहराइयों से

एक प्यारा सा फ़रिश्ता अकेले सो रहा है

थोडा उदास ,थोडा थका सा हुआ

नींद भरी आँखों में भी जगा सा हुआ

ए हवाओं थोडा मद्धम बहना

ए रात ! चांदनी को समेटे रहना

अँधेरे से वो डर न जाये

आंधियों से वो जग न जाये

अपनी बेबसी -ए -दूरी से मेरा दिल रो रहा है

क्योंकि मेरा फ़रिश्ता अकेले सो रहा है

थोडा उदास ,थोडा थका सा हुआ

नींद भरी आँखों में भी जगा सा हुआ

पता नहीं खाना खाया की नहीं

सर्दी में तन को ढकाया की नहीं

दिनभर की मुश्किलों को भुला पाया की नहीं

और ,नहीं देख सकता मैं ये जो भी हो रहा है

मेरा प्यारा फ़रिश्ता तो अकेले सो रहा है

थोडा उदास ,थोडा थका सा हुआ

नींद भरी आँखों में भी जगा सा हुआ