शनिवार, 14 अगस्त 2010


मेरी मेरी प्यारी भारत माँ
तुझपे कुरबां सारा जहां
सुन्दर सुन्दर प्यारी-२
आँचल में फैली प्रकृति की हरियाली
ममता के बहते नदियाँ झरने
हर प्राणी के दिल को हरने
ऊंचे-२ तेरे पर्वत दुर्गम
प्रफुल्लित करते ह्रदय को हरदम
इतना रमणीक सौंदर्य और कहाँ?
इतना मातृत्व और कहाँ ?
सगी माँ भी लगे सौतेली सी
इतना ज्यादा तेरा वात्सल्य माँ





बुधवार, 11 अगस्त 2010

माँ एक ऐसा तोहफा है मिलता है जो बस एक बार
चाहे तुम ठुकरा दो उसको कम न होगा उसका प्यार
चिंतित मस्तक ,दिल में ममता और आँखों में भरा दुलार
इन्ही आभूषणों होता हर हिन्दुस्तानी माँ का श्रृंगार
पाकर इतनी प्यारी माँ मेरा है हर दिन त्यौहार
मेरी माँ अच्छी माँ तुझपे न्योछावर मैं बार बार

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

बेटी के आगमन की ख़ुशी


मैं एक भारतीय नारी हूँ
करती परिश्रम उम्र साड़ी हूँ
सुनाती हूँ तुमको एक कहानी
मतलब आपबीती खुद अपनी जुबानी
बचपन मेरा दुलार में बीता
बीती जवानी समस्याओं के भार में
पर कभी कमी आने न पाई मां बाप के दुलार में
फिर विवाह की पावन घडी आई
संग नए रिश्ते नए-२ भार लायी
धीरे-२ जीवन चक्र आगे बढ़ा
परिवार में स्नेह परवान चढ़ा
पर एक चीज की हम सब को चाहत थी
वो चाहत नन्ही कलि की चन्ह्चाहट थी
मंदिर गयी पगोडा गयी और गयी तीरथ सारे
उनके रूहानी असर से मासूम दस्तक आई मेरे द्वारे
उसकी चंचल भगवान् सी पवित्र हसीं से पूरा हुआ अधूरापन
और उसकी शरारतों से पाया मैंने फिर से बचपन
मेरी पारी मेरे घर की खुशियों का पिटारा है
और वो तो पूरे मोहल्ले की आँखों का सितारा है
मुझे बेटी की माँ होने पर गर्वे है
आगमन पश्चात उसके हर दिन मेरा पर्व है


एक प्रेमी की तड़प


जब न होंगे वन्यजीव और ना ही वर्षावन
जब न होगी स्नेह भावना और न ही अपनापन
तब समझ लेना की आ गया developmental saturation
तब भारत होगा नकली अमरीका और हम नकली अमरीकन
न होगी प्राचीन धरोहर और न ही पारंपरिक वसन
रोटी चावल खायेंगे कुत्ते पिज्जा बर्गेर इंसानी भोजन
एक त्रण भी नहीं दिखेगी देखो चाहे १००-२ योजन
कर्क रोग और एड्स से काप उठेगा सबका मन
शीतकाल में भी होगी तब असहनीय अस्वाभाविक तपन
है समय नहीं अब और प्यारे बचा लो अपना ये चमन
कर कर खूब वृक्षारोपण पुनः बसा लो अपना गुलशन
वर्ना विलुप्त हो जायेगा समस्त धरा का सुलभ भूषण

खतरे में है धरती माँ


ख़त्म हो रहा है जंगल
सुनिश्चित है अब अमंगल
काट के वनों को कहाँ जाओगे
विनाश के मुंह में ही आओगे
मनुष्य अब सुधर भी जाओ
वृक्षारोपण करो कराओ
करो पर्यावरण की रक्षा
वर्ना देनी होगी कठिन परीक्षा
नए नए अभ्यारण्य बनाओ
पाश्चात्य को अपना कर्त्तव्य दिखाओ
वरना अंत सुनिश्चित है
तुंहारा भी और मेरा भी


लिखी अब तक मैंने कई शायरी और कई तराने
पर हाजिर हुआ हूँ ,तेरी आँखों की कहानी सुनाने
आँखें तेरी मैखाना है ,और मैखाने में पसरा सुरूर है
इन दो जामों की मशहूरिअत फैलीअब तो दूर दूर है
इन शरारती आँखों का छाया हर दिल पे फितूर है
और हर वक़्त इन में खोये रहने को ये बंदा मजबूर है
अदा हया मासूमीअत मोहब्बत सुकून खुमारी
इन रंगों से सजी है तेरी आँखों की पच्चीकारी
अब और मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता
चढ़ती ही जा रही है मुझपर बेकरारी
चाहता हूँ इज़ाज़त तुमसे निहारने को इन्हें उम्र सारी
तेरी आँखे सब से जुदा हैं माने या ना माने
आँखें कहना गलत ही होगा हैं तो ये पैमाने
पूरा बखान करते करते तो बीत जायेंगे ज़माने
गलती हो तो माफ़ करना नहीं ए थे तुझे सताने