शनिवार, 14 अगस्त 2010


मेरी मेरी प्यारी भारत माँ
तुझपे कुरबां सारा जहां
सुन्दर सुन्दर प्यारी-२
आँचल में फैली प्रकृति की हरियाली
ममता के बहते नदियाँ झरने
हर प्राणी के दिल को हरने
ऊंचे-२ तेरे पर्वत दुर्गम
प्रफुल्लित करते ह्रदय को हरदम
इतना रमणीक सौंदर्य और कहाँ?
इतना मातृत्व और कहाँ ?
सगी माँ भी लगे सौतेली सी
इतना ज्यादा तेरा वात्सल्य माँ





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